Thursday, October 8, 2009

मेरी एक कविता ...... भुली बिसरी सी !!

आज रात मैं  लिख सकता हूँ मैं,
निस्सीम दुःख की पंक्तियाँ
लिख सकता हूँ जैसे
अकस्मात् रात ज़रा ज़रा बिखर गयी है
और दूर आसमान में थरथराते हैं नीले तारे
रात की हवा आसमान में भंवर सी झूमती और गाती है.

सबसे दुःख की कविता में
लिख सकता हूँ मैं आज की रात
मैं उसे प्यार करता था
और कभी कभी उसने भी किया मुझसे प्यार.

आज वसे ही और रातों में
वो मेरे आगोश में सिमटी थी
इस अनंत आसमान के नीचे फिर - फिर चूमा मैंने उसे

उसने मुझे प्रेम किया
और कभी - कभी मैंने भी प्यार किया उसे
उन अपलक देखती बड़ी - बड़ी आँखों से
कैसी कोई बिना प्यार किये रह सकता था

दुःख की सबसे गाढ़ी और
स्याह सतहें लिख सकता हूँ आज रात
आज जब वो मेरे पास नहीं
आज जब महसूस करता हूँ उसका खोना
आज मैं सुन सकता हूँ इस असीमित विस्तार वाली रात
जो उसके न होने से और भी गहरा गयी है
और घास पर ओश की बूंदों जैसे
रूह  पर उतरती है " कविता "

न होकर भी वह  हर जगह इतनी है कि
क्या फर्क पड़ता है जो मेरा प्यार उसे रोक नहीं पाया
रात बिखरी हुयी है ज़रा - ज़रा और वो मेरे पास नहीं








बस! दूर कंही कोई गा रहा है, बहूत दूर
मैं नहीं मानता कि मैंने उसे खो चूका हूँ
मेरी नज़रें उस तक पंहुंचने के लिए तलाशती है
मेरा दिल उसे ढूंढ़ता है और वो मेरे पास नहीं

रात वही है
उन्ही दरखतों को दुधिया चांदनी में नहलाती हुयी
हम नहीं रह पाए वही, जो थे हम कभी

उसे मैं उसे प्यार नहीं करता
लेकिन जब भी किया इतनी दीवानगी से किया
मेरी आवाज़ ढूँढती थी उस हवा को
जिसमे उसके कानों की छुवन हो

किसी और कि, वो किसी और कि होगी अब
कोई और चूमता होगा अब उसे
उसकी आवाज़, उसकी दहकती देह
उसकी आँखें सीमा रहित अनंत

मैं उसे अब प्यार नहीं करता
लकिन शायद मैं करता हूँ उसे प्यार
प्यार इतना मुख्तसर और
उसे भुलाने की कभी न खत्म होती कोशिशें

एक ऐसे ही रात में मैंने उसे अपनी बांहों में पाया था
अब भी मेरी रूह नहीं मानती कि मैने उसे खो दिया

शायद यही उसका दिया आखरी दर्द होगा
और शायद यही नज़्म होगी
जो उसके लिए लिख सकता हूँ .....
(मेरी पुरानी संग्रह में से .....)