किसको मन की बात बताऊँ
किससे मन का राज़ छिपाऊँ
इन बातों में फँस कर नाहक
क्यों मैं मन का चैन गँवाऊँ
जैसा हूँ वैसा ही क्यों न
दूजों पर खुद को जतलाऊँ
छल-छिद्रों से दूर रहूँ मैं
मन को निर्मल, साफ़ बनाऊँ
एै खुद़ा इतनी हिम्मत दे दो मौला
जीवन रह कर पाक़ साफ़ बिताऊँ........