Thursday, September 3, 2009

राहें बहुत सीधी सरल पर ....

राहें बहुत सीधी सरल पर ................
होने को तो होता है पर
कुछ का कुछ निशचित हो जाता है
आते आते हाथ फिसलकर मछली जैसा हल खो जाता है.
अपने ही वारों से, अपने को बचने की,
राह कठिन है मेंहदी सा पीस कर रचने की .

यूँ तो बुत सरल सीधी
पर राही यंहा भ्रमित हो जाता है.

भूले सिरे से इसकी असफलता ही उतनी,
और साथ में नयी शिराएँ और वो धमनी

आते जब परिणाम सामने
सृष्टा स्वतः चकित हो जाता.

अपने हाटों कात लिया, लेकिन फिर बुनना,
बीच - बीच में वाजिब कहना, वाजिब सुनना .......

राहें बहुत सरल सीधी पर
राही यंहा भ्रमित हो जाता ..........................

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